न उत्सव, न स्वागत… पहलगाम हमले ने बदला मधुबनी में पीएम मोदी का कार्यक्रम!

 

न उत्सव, न स्वागत… पहलगाम हमले ने बदला मधुबनी में पीएम मोदी का कार्यक्रम!


न उत्सव, न स्वागत… पहलगाम हमले ने बदला मधुबनी में पीएम मोदी का कार्यक्रम!


झंझारपुर, मधुबनी: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों के तहत मिथिलांचल से शुरू होने वाले जयघोष कार्यक्रम की रौनक उस समय फीकी पड़ गई, जब जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 28 लोगों की जान चली गई। इस घटना के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मिथिलांचल दौरा अब एक भावनात्मक और सादगीपूर्ण कार्यक्रम के रूप में आयोजित किया जा रहा है।


स्वागत से परहेज़, शोक की छाया


स्वागत से परहेज़, शोक की छाया

पीएम मोदी के आगमन पर अब किसी प्रकार का पारंपरिक स्वागत नहीं किया जाएगा। न तो बुके भेंट किए जाएंगे, न ही पाग या मखाना माला जैसी मिथिला
की प्रतीक भेंटें दी जाएंगी। मंचीय सजावट और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों की जगह अब एक शोकसभा जैसा माहौल रहेगा, जिसमें पहलगाम हमले में जान गंवाने वालों को श्रद्धांजलि दी जाएगी।

घोषणाएं होंगी, लेकिन औपचारिक अंदाज़ में


घोषणाएं होंगी, लेकिन औपचारिक अंदाज़ में

पीएम मोदी इस दौरे में मिथिलांचल के लिए प्रस्तावित कई विकास योजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास करेंगे, लेकिन पूरे कार्यक्रम को अत्यंत सादगी से पूरा किया जाएगा। मखाना बोर्ड के गठन की घोषणा और बाढ़ राहत के लिए 12 हजार करोड़ की योजनाओं का जिक्र किया जाएगा।


मनरेगा के अंतर्गत बिहार को 2,102.24 करोड़ रुपये की पहली किस्त जारी किए जाने की जानकारी दी जाएगी, जो श्रमिकों के हित में एक महत्वपूर्ण पहल है।

‘नमो भारत एक्सप्रेस’ को मिलेगी हरी झंडी

‘नमो भारत एक्सप्रेस’ को मिलेगी हरी झंडी


इस दौरे में प्रधानमंत्री ‘वंदे मेट्रो’ (नमो भारत एक्सप्रेस) को भी हरी झंडी दिखाएंगे, लेकिन पूरे आयोजन में कोई विशेष उत्सव नहीं होगा। अंत में, पीएम मोदी पहलगाम हमले को लेकर गहरा शोक व्यक्त करेंगे और इसे एक कायराना हरकत बताते हुए उसकी कड़ी निंदा करेंगे।

मिथिलांचल पर राजनीतिक नजर

विधानसभा चुनाव 2020 में मिथिलांचल की 60 में से 40 से अधिक सीटें एनडीए गठबंधन के पास थीं। सीतामढ़ी, शिवहर, मधुबनी, दरभंगा, मुजफ्फरपुर और वैशाली जैसे जिलों में बीजेपी-जेडीयू का वर्चस्व रहा है। हालांकि, राजद भी कुछ क्षेत्रों में प्रभावी रही है। आगामी चुनावों को देखते हुए, यह दौरा क्षेत्रीय समीकरणों को साधने की एक बड़ी कोशिश के रूप में देखा जा रहा था, जिसे अब पहलगाम की त्रासदी ने एक अलग रूप दे दिया है।




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