
बिहार के पूर्णिया जिले से एक मानवता को झकझोर देने वाली घटना सामने आई है। अंधविश्वास, भीड़तंत्र और पंचायत के तालिबानी फरमान ने एक ही परिवार के पांच निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया।
गांव के मुखिया नकुल उरांव के इशारे पर गांव की भीड़ ने डायन बताकर पांच लोगों को जिंदा जलाकर मार डाला। मृतकों में बाबूलाल उरांव (50), उनकी पत्नी, मां, बेटा और बहू शामिल हैं।
घटना का गवाह बना परिवार का 16 वर्षीय बेटा सोनू, जो किसी तरह बचकर निकला और पुलिस को सूचना दी।
250 की आबादी वाला टेटगामा गांव अब पूरी तरह खाली हो चुका है। डर के कारण ग्रामीण रातोंरात पलायन कर चुके हैं।
पुलिस ने अब तक तीन शव बरामद किए हैं और दो मुख्य अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया है। बाकियों की तलाश जारी है।
मानवाधिकार और समाज पर सवाल
इस जघन्य हत्या ने एक बार फिर दिखा दिया कि बिहार के कई गांवों में अब भी डायन प्रथा के नाम पर महिलाओं और परिवारों की बलि चढ़ाई जा रही है। यह सिर्फ अंधविश्वास नहीं, बल्कि हिंसा और सत्ता की साजिश है।
सरकार और मानवाधिकार आयोग को सख्त कानूनी कार्रवाई और सामाजिक जागरूकता की जरूरत है, ताकि भविष्य में कोई और निर्दोष "डायन" बनकर न मरे।
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